ग्वार घोटाला: 33,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला ग्वार, अफवाहों के कारण हुआ सोने से महंगा
भारत में समय-समय पर कई घोटाले सामने आते हैं, जिनमें से कुछ का असर लंबे समय तक रहता है। ऐसा ही एक घोटाला था “ग्वार घोटाला”, जो 2011-2012 में सामने आया। यह घोटाला ग्वार की कीमतों में हुई बेतहाशा बढ़ोतरी और उसके बाद भारी गिरावट से जुड़ा हुआ था। इस घोटाले ने न केवल किसानों बल्कि व्यापारियों को भी भारी नुकसान पहुंचाया और पूरे बाजार को हिलाकर रख दिया।
ग्वार क्या है और क्यों हुआ था इतना महंगा?
ग्वार एक प्रकार की फसल है, जिसे मुख्य रूप से पशु आहार और गोंद बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। भारत दुनिया का 90% ग्वार उत्पादक है और इसके उत्पादन में राजस्थान और मध्यप्रदेश प्रमुख राज्य हैं। ग्वार का गम, जिसे ग्वार गम कहा जाता है, विभिन्न उद्योगों में उपयोग होता है, जैसे की गोंद बनाने के लिए, पेट्रोलियम उद्योग में कच्चा तेल निकालने के लिए, और खाद्य पदार्थों में भी इसका इस्तेमाल होता है। भारत, जो अपने उत्पादन का 70% निर्यात करता है, वैश्विक स्तर पर ग्वार गम का बड़ा निर्यातक है।
2011-2012 में ग्वार की कीमतों में अप्रत्याशित उछाल
2011 में अचानक ग्वार के दामों में भारी बढ़ोतरी हुई। यह बढ़ोतरी कच्चे तेल की निकासी के लिए ग्वार गम के बढ़ते उपयोग को लेकर उठी अफवाहों के कारण हुई थी। यह अफवाह फैली कि अमेरिका में ग्वार गम की मांग बहुत तेजी से बढ़ने वाली है और भविष्य में ग्वार का भाव एक लाख रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच सकता है। इस अफवाह के बाद किसानों और व्यापारियों में हड़कंप मच गया और ग्वार की खरीदारी में इजाफा हुआ। 2012 में ग्वार का भाव 33,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया, जो सामान्यत: 2500-3000 रुपये प्रति क्विंटल होता था।
ग्वार की बुआई में तेजी और उसके बाद का नुकसान
ग्वार के दामों में इस जबरदस्त बढ़ोतरी को देखते हुए राजस्थान और हरियाणा के किसानों ने ग्वार की बुआई बढ़ा दी। किसानों को यह भरोसा दिलाया गया कि वे इस महंगे भाव पर ग्वार को बेच सकते हैं। राजस्थान के गंगानगर जैसे क्षेत्रों में ग्वार का बीज किसानों को मुफ्त में दिया गया और उनसे ग्वार खरीदने का वादा किया गया। इस दौरान ग्वार के दाम बढ़ते गए और 33,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक पहुंचे।
हालांकि, यह तेजी बहुत समय तक नहीं रही। 2012 के अंत तक ग्वार की कीमतें गिरनी शुरू हो गईं और 4500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गईं। यह गिरावट व्यापारियों और किसानों के लिए बेहद हानिकारक साबित हुई। कई व्यापारियों ने ग्वार का स्टॉक जमा किया था, लेकिन जब कीमतें गिरीं, तो वे भारी नुकसान में आ गए।
ग्वार घोटाले का राजनीतिक असर
ग्वार घोटाले का असर केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक भी हुआ। राजस्थान में इस घोटाले को लेकर “जमीदारा” नामक एक पार्टी का गठन किया गया, जो ग्वार किसानों के हितों की रक्षा करने का दावा करती थी। इस पार्टी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर विजय प्राप्त की और कामिनी अग्रवाल विधायक बनीं। हालांकि, बाद में अग्रवाल और उनकी कंपनी पर कई आरोप लगाए गए।
वायदा बाजार और मैन्यूपुलेशन का असर
ग्वार की कीमतों में तेजी और गिरावट के पीछे वायदा बाजार में मैन्यूपुलेशन का भी हाथ था। कई विशेषज्ञों का मानना है कि वायदा कारोबारियों ने बाजार में गलत तरीके से ग्वार की कीमतों को बढ़ावा दिया और अफवाह फैलाकर अपने स्टॉक को महंगे दामों पर बेच दिया। इस मैन्यूपुलेशन ने सामान्य व्यापारियों को नुकसान में डाल दिया और बाजार में अस्थिरता पैदा की।
ग्वार घोटाला एक उदाहरण है कि कैसे अफवाहों और गलत बाजार नीतियों के कारण किसानों और व्यापारियों को भारी नुकसान हो सकता है। इस घोटाले ने यह भी साबित किया कि किसी भी वस्तु के भाव में तेज़ी या गिरावट केवल वैश्विक मांग और आपूर्ति के कारण नहीं होती, बल्कि बाजार में मैन्यूपुलेशन और अफवाहों का भी बड़ा हाथ होता है। ग्वार की कीमतों में यह उतार-चढ़ाव न केवल एक घोटाला था, बल्कि यह हमारे कृषि और व्यापारिक नीति की कमजोरियों को भी उजागर करता है।